
आशीष आर्यन
गृह मंत्रालय (MHA) के सायबर क्राइम सेल ने एक नया कदम उठाते हुए आम नागरिकों को स्वयंसेवक के रूप में शामिल कर बाल पोर्नोग्राफी, बलात्कार, आतंकवाद, कट्टरता और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों सहित अवैध और गैरकानूनी सामग्री की पहचान करने में मदद लेगी। कोई भी नागरिक स्वयंसेवक के रूप में इसकी पहचान करने और रिपोर्ट करने में सरकार के साथ जुड़ सकता है।
इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया है कि यह कार्यक्रम ट्रायल बेसिस पर जम्मू और कश्मीर तथा त्रिपुरा में शुरू किया जाएगा। बाद में इसके फीडबैक के आधार पर आगे दूसरे राज्यों में भी बढ़ाया जाएगा।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत गृह मंत्रालय (MHA) का भारतीय सायबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर (I4C) नोडल प्वाइंट के रूप में कार्य करेगा, जबकि स्वयंसेवक अपने राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के साथ सायबर स्वयंसेवक के रूप में स्वयं को रजिस्टर्ड करवा सकते हैं। स्वयंसेवकों को व्यक्तिगत विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी, जिसमें नाम, पिता का नाम, मोबाइल नंबर और ईमेल पता शामिल है, हालांकि ये अलग से सत्यापित नहीं किए जाएंगे।
सरकार के पास अभी तक कोई स्पष्ट कानूनी ढांचा नहीं है कि किसे राष्ट्र-विरोधी सामग्री या गतिविधि माना जाएगा। अक्सर ऐसे लोगों को गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रावधानों का उपयोग कर या तो “देश-विरोधी” गतिविधियों के आरोप में हिरासत में ले लिया जाता है या जेल में डाल दिया जाता है।
गृह मंत्रालय ने इंडियन एक्सप्रेस के एक ईमेल का जवाब नहीं दिया, जिसमें इस तरह के कार्यक्रम को शुरू करने के कारण के बारे में विवरण मांगा गया था कि यह कैसे देश विरोधी सामग्री या गतिविधि को परिभाषित करेगा, और सोशल मीडिया अकाउंट के खिलाफ “राष्ट्रविरोधी” गतिविधि के रूप में चिह्नित किया जाएगा।
गृहमंत्रालय का पोर्टल, जिसमें कोई भी नागरिक सायबर अपराध स्वयंसेवक के रूप में स्वयं को पंजीकरण करेगा, बताता है कि जो लोग पंजीकरण करते हैं, वे किसी व्यावसायिक लाभ के लिए इस कार्यक्रम का उपयोग नहीं कर सकते हैं या अपने संघ के बारे में कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं कर सकते हैं। स्वयंसेवकों को किसी भी सार्वजनिक मंच पर गृहमंत्रालय के साथ “नाम का उपयोग करने या एसोसिएशन का दावा करने से प्रतिबंधित” किया गया है। सायबर सुरक्षा से जुड़े वकीलों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन प्रावधानों में अब भी कई मुद्दों पर अस्पष्टता है, जिसको साफ किए जाने की जरूरत है।
सायबर क्राइम के मामलों को देखने वाले एक वरिष्ठ वकील ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “इस अधिसूचना के कई पहलू हैं। पहले बात यह है कि न तो सरकार और न ही न्यायपालिका से राष्ट्र-विरोधी सामग्री या गतिविधि की कोई कानूनी परिभाषा तय की गई है। यह एक बड़ी कमी है। दूसरी बात यह है कि स्वयंसेवकों को साथी नागरिकों के बारे में बिना किसी स्पष्ट निर्देश के रिपोर्ट करने का विकल्प दे देने से उसे बहुत अधिक शक्ति मिल जाएगी। क्या होगा अगर मैं आपको रिपोर्ट करता हूं और आपके साथ मेरे मतभेदों को निपटाने के लिए कई लोगों द्वारा रिपोर्ट की जाती है?”
इसके अलावा, पंजीकरण पोर्टल पर गृहमंत्रालय का निर्देश कहता है कि स्वयंसेवक “उसके द्वारा सौंपे गए/उसके द्वारा किए गए कार्य की सख्त गोपनीयता बनाए रखेगा।” सायबर क्राइम डिविजन कहता है, “राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के नोडल ऑफिसर भी सायबर वॉलेन्टियर के नियमों और शर्तों के उल्लंघन के मामले में वालंटियर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।”
महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले “कमजोर” समूहों में साइबर अपराध के बारे में जागरूक करने के लिए नागरिक सायबर जागरूकता प्रमोटर के रूप में पंजीकरण करवा सकते हैं। सायबर अपराध विभाग सायबर विशेषज्ञों से स्वैच्छिक आधार पर आवेदन भी मांग रहा है, जो सरकार को मैलवेयर और मेमोरी विश्लेषण के साथ-साथ क्रिप्टोग्राफी में भी मदद कर सकता है।
अधिसूचना में कहा गया है कि जो स्वयंसेवक खुद को एक प्रमोटर या विशेषज्ञ के रूप में पंजीकृत करवाना चाहते हैं, उन्हें उनके राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए और यह वैधानिक प्रावधानों के अनुसार ही होना चाहिए।
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